Sunday 29 October 2017

एक तितली

एक तितली जो कमरे की दीवार पर ऐसे आकर बैठी थी जैसे कमरा उसका ही हो… जब देखा उसे तो  लगा कितना सुकून हो कितनी शान्ति हो… सारी दुनिया की फ़िक्र से बेज़ार वो तितली, दुनिया के हर बंधन से आज़ाद वो तितली; जो बार – बार बस एक ही सवाल कर रही थी कि तुम बेरंग क्यों हो? … हर दफ़ा सवाल पूछती उस तितली के सवाल का जवाब तो न था… पर हाँ उसने सोचने पर मजबूर ज़रूर कर दिया… बहुत सोचा समझा फ़िर कहा कि दुनिया की हर तकलीफ़ से परे हो तुम शायद इसलिए रंगीन हो… मैं शायद बेरंग हूँ इसलिए की दुनिया के बंधन से आज़ाद नहीं… नहीं तुम्हारी तरह मेरे पास उड़ने को पर हैं कि जब चाहूँ उड़ जाऊँ… नहीं तुम्हारी तरह पहुँच मेरी उन बागों तक जहाँ कलियाँ हज़ार खिलती हैं… नहीं आज़ादी है कि उस आसमान को छू सकें जिसमें तुम उड़ती हो, हँसती हो, खेलती हो, गुनगुनाती हो अपनी सहेलियों के साथ… फूलों की महक में जो खो जाती हो तुम… नहीं हमको इजाज़त कि हम खो जाएं तुम्हारे जैसे, नहीं हमको इजाज़त कि हम हो जाएं तुम्हारे जैसे… उसकी बात का जवाब सुनकर वो रंगीन सी तितली मुझसे बोली… बेरंग रहना भले तुम हमेशा; बदरंग मत होना कभी… चाहे ज़माने से तुम घुलना – मिलना; पर भीड़ में न खोना कभी… चाहे लड़ना पड़े तुम्हे खिलाफ़ जिसके भी; साथ सच का देना तुम… दूर जितना भी मंज़िल हो तुमसे; रास्ता तुम्हारा – बातों में नसीहत है ये ठान लेना तुम… बातों और हिम्मत बेहिसाब दे गई… वो रंगीन सी तितली मुझे जीने का ख्वाब दे गई… वो उड़ गई उस आसमान में जहाँ उसकी मंज़िल थी… मेरी मंज़िल की तरफ़ बढ़ने का मुझको हौसला दे कर… वो उड़ गई हवा में जहाँ उसकी मंज़िल थी… मेरी मंज़िल तरफ़ बढ़ने का मुझसे ये वादा लेकर… एक तितली जो कमरे की दीवार पर ऐसे आकर बैठी थी जैसे कमरा उसका ही हो |

सूरज से समृद्ध उत्तर प्रदेश!

     बदलते विश्व के संदर्भ में पर्यावरण की रक्षा हम सभी के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है । "पृथ्वी हर आदमी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ...