Showing posts with label #Poetry. Show all posts
Showing posts with label #Poetry. Show all posts

Wednesday, 26 May 2021

राम नाम पर बनी सराकार को, रामनामी का डर सताया है...!!

 


 तुम जो इतना अपने धर्म को लेकर चीखते - चिल्लाते फ़िरते थे,

देखो ये क्या हुआ कि,

 तुम्हें तुम्हारे धर्म वाली अंतिम क्रिया भी नसीब न हुई,

और अब ये हो रहा है कि,

 तुम्हारी कब्रों पर तुम्हारे होने की आखिरी निशानी,

वो आखिरी चीज़ जो दुनिया से तुम्हें नसीब हुई,

वो रामनामी भी तुम्हारे ऊपर से हटाई जा रही है,

हुआ है ये कि राम नाम पर बनी सराकार को,

रामनामी का डर सताया है,

रोज़ अखबरों में सरकारी दावों की पोल खोलती,

तुम्हारी कब्रों की छाया है,

ये वही लोग हैं जिन्होंने,

सबको आपस में लड़ाया है...!!

तुम तो चले गए मगर तुम्हारे बाद,

कल को जब वहां मेला लगाया जाएगा,

जश्न मनाया जाएगा,

तो तुम्हारे परिजन उसी रेत पर,

जहां तुम दफ़नाए गए हो,

वहां अपनों के साथ,

खुशियां मनाएंगे,

वो तुम्हें याद तो करेंगे,

मगर तुम कहां दफ़न हो ये भूल जाएंगे!

तुम्हें ज़िन्दा रहकर क्या मिला?

तुम मरकर भी क्या पाओगे?

धर्म में बंटवारे का राग अलापने वाले,

अब कैसे हिन्दुत्व बचाओगे?

यही बेहतर है सबकी खातिर, 

कि अब भी जाग जाओ,

तुम्हें तोड़ने वाली सरकार के,

जाल में न आओ,

सारे भेदभाव छोड़कर,

संकट के समय में एक दूसरे का साथ निभाओ...!!







Tuesday, 10 December 2019

बिटिया रानी

बिटिया रानी



इससे अच्छा है मर जाना तेरा, 
कोख के अन्दर बिटिया रानी, 
हर बार जब तुमने उड़ना चहा, 
इस कुंठित समाज ने भौंहें तानी, 
हर बार जब तुमने चाहा कि, 
तुम करो ज़रा सी मनमानी, 
किसी बेरहम दरिंदे ने फिर, 
नियत दिखाई हैवानी, 
तुम्हें बार - बार छूना चाहा, 
तुम्हें सड़कों पर फिर दौड़ाया, 
आग लगाकर तेरे जिस्म को, 
मिटा दी तेरी सभी निशानी, 
खबर तुम्हारी हुई शहर को, 
पर न जा पाईं तुम पहचानी, 
इससे अच्छा है मर जाना तेरा, 
कोख के अन्दर बिटिया रानी... 
आस्था

Saturday, 5 January 2019

सन्नाटा

सन्नाटा

कभी कभी कितना कुछ कहना होता है,
उन पर्दों से दीवारों से,
उन गुम्बदों से मीनारों से,
पानी के गिलास से,
खिलते मुरझाते गुलाब से,
आंखों के काजल से,
आसमां के बादल से,
मांझी की नाव से,
रेत पर चलते पांव से,
जलते हुए चिराग से,
बुझी हुई खा़क से,
समंदर की गहराई से,
खुद अपनी ही परछाई से,
उसके मासूम इशारों से,
आपस की तकरारों से,
कभी कभी कितना कुछ कहना होता है...
और फ़िर कुछ ऐसा होता है,
हर राज़ दिल में ही रहता है,
तुम कुछ भी नहीं कहते हो,
पर सन्नाटा ये कहता है...
कभी कभी कितना कुछ कहना होता है...
मगर उठती हुई हर आवाज़ को; दिल में ही रहना होता है...

Sunday, 1 April 2018

मेरा सरदार सो रहा है

मेरा सरदार सो रहा है 


मेरा सरदार सो रहा है, कोई होश में लाओ,
नींद खुलती नहीं उसकी, कोई जाकर उसे जगाओ,
वतन को बेच देगा वो, मुझे इस बात का डर है,
मेरे देश को बिकने से, कोई आकर ज़रा बचाओ,
वो अक्सर देखा जाता है, जग घुमाई करते हुए,
कोई कह दो उसे कि, अपने मुल्क लौट आओ,
मेरा सरदार सो रहा है, कोई होश में लाओ |
नींद खुलती नहीं उसकी, कोई जाकर उसे जगाओ ||
बंगाल की ये आग, अभी ठंडी नहीं पड़ी,
कश्मीर में जवान मर रहा है, कोई उसे बताओ,
मेरे देश का किसान, फंदे पर लटक रहा है,
कोई उसकी गर्दन से, ये रस्सी तो हटाओ,
मेरा सरदार सो रहा है, कोई होश में लाओ |
नींद खुलती नहीं उसकी, कोई जाकर उसे जगाओ ||
बच्चों के भविष्य से, खिलवाड़ हो रहा है,
इम्तिहान का पेपर, लीक होने से बचाओ,
कौन जिम्मेदार ? 39 भारतियों की मौत का,
हम भी जानना चाहते हैं, हमें भी बताओ,
मेरा सरदार सो रहा है, कोई होश में लाओ |
नींद खुलती नहीं उसकी, कोई जाकर उसे जगाओ ||

मांझी की मुश्किल डगर

मांझी की मुश्किल डगर


और सूरज उग रहा उस सम्त था अंधेरा जिधर,
मांझी की नाव भी चलती रही उस ही डगर,
लाख तूफ़ानों का वो भी सामना करता रहा,
दिल में उसके हौसलों काा जलता रहा दिया उधर...||

बैठी रही तैयार उसको निगलने को हर भंवर,
सोचता रस्ता बदलकर छोड़ दे वो ज़िद मगर,
याद आता है कि बिटिया सुनहरी भूखी है,
और चूल्हे की राख भी ठंडी पड़ी होगी उधर...||

फ़िर अंधेरे और दिन की चढ़ती धूप का सफ़र,
हो गई आसान मांझी की वो मुश्किल सी डगर,
चल दिया मंज़िल की ओर तन पर चादर ओढ़कर,
और सूरज उग रहा उस सम्त था अंधेरा जिधर...||

Tuesday, 6 March 2018

यादों का झरोंखा

यादों का झरोंखा

न जाने उस घर को देखकर क्यों हर लम्हा याद आता है,
वो जीनों से फ़िसल कर गिरना,
वो उठकर मुस्कुराना याद आता है,
वो बारिश में भीगन की चाहत,
और डाँट के डर से छुप जाना याद आता है,
न जाने उस घर को देखकर क्यों हर लम्हा याद आता है|
जहाँ गुज़री है मेरे बचपन की गर्मी,
जहाँ बदली है मेरे हाथों की नर्मी,
कि वो घर चीख कर मुझसे कह रहा था आज,
भइया संभल कर चलना जूता फ़िसल जाता हैं,
न जाने उस घर को देखकर क्यों हर लम्हा याद आता है|
मुझसे रूठा सा बचपन याद आता है,
पीछे छूटा सा बचपन याद आता है,
न जाने उस घर को देखकर क्यों हर लम्हा याद आता है|

Sunday, 10 September 2017

पता है मुझे...

फ़र्क बस इस बात का है,
कि ध्यान थोड़ा देर से देती हूँ,
वरना मुझे अच्छे से पता है कि,
मेरी किस्मत कब काम नहीं करती...
#आस्था

सूरज से समृद्ध उत्तर प्रदेश!

     बदलते विश्व के संदर्भ में पर्यावरण की रक्षा हम सभी के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है । "पृथ्वी हर आदमी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ...