Saturday, 5 January 2019

सन्नाटा

सन्नाटा

कभी कभी कितना कुछ कहना होता है,
उन पर्दों से दीवारों से,
उन गुम्बदों से मीनारों से,
पानी के गिलास से,
खिलते मुरझाते गुलाब से,
आंखों के काजल से,
आसमां के बादल से,
मांझी की नाव से,
रेत पर चलते पांव से,
जलते हुए चिराग से,
बुझी हुई खा़क से,
समंदर की गहराई से,
खुद अपनी ही परछाई से,
उसके मासूम इशारों से,
आपस की तकरारों से,
कभी कभी कितना कुछ कहना होता है...
और फ़िर कुछ ऐसा होता है,
हर राज़ दिल में ही रहता है,
तुम कुछ भी नहीं कहते हो,
पर सन्नाटा ये कहता है...
कभी कभी कितना कुछ कहना होता है...
मगर उठती हुई हर आवाज़ को; दिल में ही रहना होता है...

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