Tuesday, 6 March 2018

यादों का झरोंखा

यादों का झरोंखा

न जाने उस घर को देखकर क्यों हर लम्हा याद आता है,
वो जीनों से फ़िसल कर गिरना,
वो उठकर मुस्कुराना याद आता है,
वो बारिश में भीगन की चाहत,
और डाँट के डर से छुप जाना याद आता है,
न जाने उस घर को देखकर क्यों हर लम्हा याद आता है|
जहाँ गुज़री है मेरे बचपन की गर्मी,
जहाँ बदली है मेरे हाथों की नर्मी,
कि वो घर चीख कर मुझसे कह रहा था आज,
भइया संभल कर चलना जूता फ़िसल जाता हैं,
न जाने उस घर को देखकर क्यों हर लम्हा याद आता है|
मुझसे रूठा सा बचपन याद आता है,
पीछे छूटा सा बचपन याद आता है,
न जाने उस घर को देखकर क्यों हर लम्हा याद आता है|

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