Monday, 25 December 2017

क्या सांता मुझको भूल गया?

यूँही बेख़याली में अचानक ये ख़याल आया कि बड़े साल हो गए सांता घर नहीं आया| इस जाड़े के मौसम और नये साल की सरगर्मी के बीच आज शाम बहुत सी यादें ताज़ा हो गईं| एक – एक कर के सब पुरानी बातें याद आने लगीं| जैसे की बचपन में 25 दिसम्बर आने से पहले ही सभी को उसका इंतज़ार रहता था| सांता के आने की खुशी में अक्सर सब बच्चे मोज़े निकाल कर दरवाज़े पर बाँध देते थे| तब ये माना जाता था कि रात को जब सब कोई सो जाएगा तब सांता आकर उनके मोज़े में गिफ़्ट रख देंगे| और ये बात अक्सर सच भी साबित होती थी| जब बच्चे सुबह सो कर उठते थे तो तोह्फ़े उनका इंतज़ार कर रहे होते थे| जिसे देखकर वो फूले नहीं समाते थे| बातों – बातों में वो जॉमेट्री बॉक्स भी याद आ गया जो मुझे कमरे की खिड़की पर गिफ़्ट रैपर में पैक्ड, चॉक्लेट के साथ मिला था जिसपर लिखा था हार्टली गिफ़्टेड मतलब दिल से दिया हुआ तोह्फ़ा| जिसको देखकर क्लास के सारे बच्चे जल गए थे कि सांता ने सिर्फ़ मुझको गिफ़्ट क्यों दिया| फ़िर अगले साल मिली वो खूबसूरत डॉल भी याद आई जिसने मेरा क्रिस्मस-डे खुशी से भर दिया था| चर्चे तो हर तरफ़ मेरी डॉल के भी हुए थे| और उसके अगले साल की वो प्यारी सी घड़ी जो लाकर तो पापा ने दी थी मगर ये कहा था कि वो घड़ी मेरे लिए सेंटा ने दी है| कई साल बीत गए मगर फ़िर याद नहीं आया कि सांता ने मुझे और क्या दिया| शायद इस दुनिया की बढ़ती जनसंख्या में सांता भूल गया मुझको| फ़िर सोचते ही सोचते इस बचपने ने समझदारी की चादर ओढ़ ली और यादों को सिलसिला ख़त्म हो गया| थोड़ा दर्द हुआ ये सोचकर कि ये बचपन कितना अच्छा था| छोटा था लेकिन फ़िर भी कितना सच्चा था| बीते सालों में जब सांता की याद नहीं आई तो संता और बंता के चुटकुले चलन में थे| हांलाकि धीरे – धीरे वक्त के साथ वो भी धुंधले से हो गए| अब आजकल खुशियों का भी क्या रह गया है कोई खुशी चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो उसमें वो बचपन वाली बात नहीं होती| अब मुस्कुराने के लिए भी पहले सोचना पड़ता है कि सामने से देख रहे इंसान का सवाल क्या होगा| ख़ैर ये बीती यादों झरोंखा मुस्कुराहट के कुछ पल तो दे गया मगर अपने साथ ज़हन में एक सवाल भी छोड़ गया| सवाल कुछ ऐसा था कि क्या सचमुच सांता तोह्फ़े भेजता था या घर वाले? अगर वो सांता ही था तो सच में क्या सांता मुझको भूल गया?और अगर हाँ तो आज उसकी बड़ी याद आई|हांलाकि आज तोह्फ़े नहीं ढूंढ़े मगर हाँ खुशियों की खोज में नज़रें खिड़की और अलमारी दोनों पर गईं|

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