Saturday, 21 April 2018

रंगों का कारोबार तेरा...

रंगों का कारोबार तेरा...


 
लखनऊ है तो महज़ गुम्बद-ओ-मीनार नहीं,
सिर्फ़ एक शहर नहीं कूचा-ओ-बाज़ार नहीं,
इसके आँचल में मोहब्बत के फूल खिलते हैं,
इसकी गलियों में फ़रिश्तों के पते मिलते हैं|
 
इस शेर और हमारी तलाश को लखनऊ  की गलियों  में सालों से अपने हुनर और लखनऊ की मशहूर कला रंगरेज़ी का काम करने वाले एक फ़रिश्ते मोहम्मद लतीफ़ ने मुकम्मल किया| बदलते वक्त के साथ सब कुछ तो बदला मगर इंसान की तन ढ़कने की ज़रूरत कभी नहीं बदली| हालांकि इस ज़रूरत पर वक्त के साथ फ़ैशन का चस्का  ज़रूर चढ़ गया| और फ़ैशन  के चस्के के चलते हमें कपड़ों में तरह - बेहतर के रंग देखने को मिले|


एक कपड़े की पहचान हमेशा से उसके रंग से होती आई है जिसका नतीजा  है कि ये रंगों का कारोबार "रंगरेज़ी"  सदियों से चला आ रहा है| बेशक रंगों के कारोबार में बहुत पैसे नहीं हैं, मगर रंगरेज़ों के हौसले भी किसी से कम नहीं हैं|

 
मोहम्मद लतीफ़ का परिवार पिछले 500 सालों से इस कारोबार को आगे बढ़ा रहा  है और अब लखनऊ में रंगरेज़ी का काम करने वाला अाखिरी परिवार बनकर रह गया है| लखनऊ के मौलवीगंज में आज भी लतीफ़ अपनी पुरानी सी दुकान पर कपड़े रंगने का काम करते हैं| वहीं फ़तेहगंंज की गलियों में बने अपने घर में कारखाना भी लगा रखा है|


मोहम्मद लतीफ़ अपने कारखाने  में सिर्फ़ कपड़े रंगते ही नहीं हैं बल्कि कपड़ों में डिज़ाइन बनाने का काम भी करते हैं|  जैसे कि शादी में दुल्हन पर चढ़ने वाली चुनरी "निगोड़ा", इन्द्रधनुष के रंगों रंगी धनक, बसंत के मौसम में पीली साड़ी या दुपट्टा, और सावन में हरे रंग से रंगी  साड़ी या  दुपट्टा| लखनऊ का रंगीन कपड़ों के टुकड़ों को जोड़कर सिला जाने वाला चटपटी लहंगा और घाघरा हमेशा से ही मशहूर रहा है| मगर लतीफ़ के यहां इसको महज़ रंगकर बनाया जाता  है| हमसे बात करते वक्त मोहम्मद लतीफ़ ने रंगरेज़ी, उसके इतिहास और उनके परिवार के बारे में बहुत कुछ बताया|  इस बातचीत के दौरान कभी उनके चहरे पर गर्व और खुशी का भाव देखने को मिले तो वहीं कभी आने वाले कल की चिंता और दु:ख का भाव देखने को मिला| आइये देखते हैं  उन्होंने हमसे बातचीत के दौरान क्या कहा - 

 
यही सब बाते कम नहीं हैं बल्कि लतीफ़ तो यह भी दावा करते  हैं कि वो अपने रंगों के हुनर से आसमानी बादलों को भी कपड़े पर उतार सकते हैं| मगर धीमे पड़ते इस कारोबार ने उनको भी परेशान कर दिया है| जहाँ रंगरेज़ों को सरकारी मदद भी नहीं मिल पा रही है| वहीं बदलते फ़ैशन के ट्रेंड ने भी इस रंगों के कारोबार पर बुरा असर डाला है|

6 comments:

  1. thats a beautiful tribute to a dying tradition

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  2. Aastha Tumhare likhane ki Aalhad sailly bahut Subayavasthit dang ki hai

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  3. वाह गजब का लिखा है आप ने...

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