बदलते विश्व के संदर्भ में पर्यावरण की रक्षा हम सभी के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है।
"पृथ्वी हर आदमी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त प्रदान करती है, लेकिन व्यक्ति की लालच को पूरा करने के लिए नहीं।"
हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की कही गई इस बात को आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि हम चाहे जितनी भी तरक्की कर लें यदि हम प्रकृति का सम्मान नहीं करेंगें तो प्रकृति में मौजूद ऊर्जाओं को भी हम प्राप्त नहीं कर सकेंगे।
आज़ादी के बाद से अब तक कांग्रेस सरकारों के कार्यकालों में पर्यावरण को महत्ता देते हुए – जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1974, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 और वायु प्रदूषण कानून से संबंधित कई कानून बनाए गए।
वहीं उर्जा के उत्पादन के संदर्भ में कुछ तथ्यों को जानना बहुत आवश्यक है -
1947 में हमारे देश की आज़ादी के समय सिर्फ 1362 मेगावाट बिजली का ही उत्पादन होता था; जबकि आज के समय में लगभग 1,70,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है। किन्तु इसके बाद भी हमारे देश में बिजली की मांग हर वर्ष लगभग 7% बढ़ रही है।
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड का गठन कम्पनी अधिनियम 1956 के अन्तर्गत 25-अगसत-1980 को किया गया था, जिससे कि राज्य में नये ताप विद्युत ग्रहों का निमार्ण किया जा सके।
आज़ादी के समय देश में 60% बिजली उत्पादन का काम निजी कंपनियों के हाथ में था जबकि आज लगभग 80% फीसदी बिजली का उत्पादन सरकारी क्षेत्र के हाथों में है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में भी पावर सेक्टर काफ़ी तेजी से आगे बढ़ा है, जिसके चलते राज्य में कृषि और उद्योग सेक्टर का भी तेजी से विकास संभव हो सका है।
मगर आज के परिदृश्य में जब इन्हीं सब चीज़ों की बात की जाती है तो देखा गया है कि तो इस पूरी व्यवस्था में कई समस्याएं हैं। वित्तीय वर्ष 2016-17 के अंत तक प्रदेश के विद्युत वितरण निगमों का सकल घाटा 73986.72 करोड़ रुपए था। आज पूरे प्रदेश की विद्युत आपूर्ति व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। कई जिलों में विघुत व्यवस्था केवल नाम मात्र है। यहां तक कि कई बार बिजली कर्मचारियों को भी अपनी अलग-अलग मांगों को लेकर हड़ताल पर बैठना पड़ता है।
2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के द्वारा सरकार गठन के एक माह के अंदर जिले में 24 घंटे, तहसील में 20 घंटे और गांव में 18 घंटे बिजली देने का वादा किया गया था; जो पूरी तरह खोखला साबित हुआ है। उत्तर प्रदेश में सैकड़ों ऐसे क्षेत्र हैं जहां वादे के अनुसार 24 घंटे बिजली तो नहीं आती बल्कि 24 घंटे में कम से कम 5-6 बार बिजली चली अवश्य जाती है। इसलिए प्रदेश के हर जनपद – हर गांव तक बिजली पहुंच सके और प्रदेश की जनता उससे लाभान्वित हो सके इसके लिए प्रकृतिक उर्जा व अक्षय उर्जा के नए माध्यमों को अवश्य बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान अप्रैल 2005 में राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना की शुरूआत देश के सभी ग्रामीण परिवारों को विद्युत पहुंचाने के उद्देश्य से की गई थी। इस योजना के तहत गरीबी रेखा से जुड़े सभी परिवारों को मुफ्त में कनेक्शन उपलब्ध कराए जाते हैं; साथ ही योजना के तहत इसमें लगने वाला पूंजी अनुदान का 90% भारत सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जाता रहा है।
सौर्य उर्जा से ग्लोबल वार्मिंग जैसी अन्य प्रकृतिक समस्याओं का समाधान हो सकती है यही कारण है कि 2006 में कांग्रेस सरकार द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा के महत्व को देखते हुए अपारंपरिक ऊर्जा स्रोत मंत्रालय (एमएनईएस) को नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का नया नाम दिया गया था।
वर्ष 2009 में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन योजना की शुरुआत जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के एक हिस्से के रूप में की गई थी। इस मिशन का लक्ष्य था कि 2022 तक 20 हजार मेगावाटा क्षमता वाली-ग्रिड से जुड़ी सौर बिजली पैदा करना और 2022 तक दो करोड़ सौर लाइट सहित 2 हजार मेगावाट क्षमता वाली गैर-ग्रिड सौर संचालन की स्थापना करना था। 24 जुलाई 2014 की एक सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार मिशन का पहला चरण यूपीए - 2 के कार्यकाल में ही पूरा कर लिया गया था। यह कांग्रेस की दूरदर्शी नीतियों का प्रभाव है कि आज सौर ऊर्जा के उत्पादन में राजस्थान सरकार देश में प्रथम स्थान पर है।
आज देश के नागरिकों और सरकार में शामिल लोगों को ये समझने की आवश्यकता है कि पर्यावरण हित से बड़ा देशहित का कोई मुद्दा नहीं हो सकता। हमें जरूरत है कि हम अपनी ऊर्जा को नवीकरणीय ऊर्जा के प्रति जागरूकता और सरकारों को बाध्य करने के लिए लगायें, जिससे कि हमारा प्रदेश सूरज से समृद्ध हो सके।