लखनऊ की आत्मा है गोमती
उत्तर
प्रदेश राजधानी की संरचना और स्थापना से पूर्व जीवन दायिनी गोमती के उल्लेख के
बिना सबकुछ अधूरा मना जा सकता है| पौराणिक आख्यानों में वर्णित है कि महाराजा
भागीरथ गंगावतरण के लिए स्थान तय करने हेतु जब अयोध्या से उत्तराखंड की ओर चले तब
उन्होंने अपनी यात्रा को लखनऊ में विराम देकर गोमती के पवन जल से स्नान किया था|
वैसे
तो नदी का किनारा किसे अच्छा नहीं लगता| नदी के किनारे बसे घाट पर मन को जो
सुख मिलता है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता| लखनऊ में गोमती नदी के तट पर
बने घाटों में एक तरफ जहाँ इत्तिहास छुपा है, वहीँ इन घाटों पर सदियों पुराणी परम्पराएं,
संस्कार, धर्म-कर्म आज भी जीवित हैं| यही नहीं पिछले कुछ वर्षों में विशेष तौर पर
सपा सरकार के कार्यकाल के दौरान रिवर फ्रंट का विकास किये जाने के कारण गोमती नदी
का सौंदर्य और भी बढ़ गया है लेकिन अभी भी लखनऊ की जीवनदायनी की सफ़ाई के लिये ठोस
पहल की ज़रूरत है|
गोमती
का इतिहास गवाही देता है कि गुप्त काल से लेकर राजपूत और मुग़ल काल तक के पुरातत्व
अवशेषों को यहाँ देखा जा सकता है| गऊघाट प्राचीन समय में गायों के पानी पीने के
लिए जाना जाता था| गऊघाट के बाद गुलाला घाट (श्मशान) पड़ता है| जहाँ हमेशा मरघट का
सन्नाटा छाया रहता है| राजा भवानी महरा द्वारा बनवाया गया राजघाट जो कि शीश महल
हुस्सैनाबाद के करीब हुआ करता था, लेकिन अब उसका अस्तित्व मिट चुका है| उसी के पास
किला कोठी थी जिसे अब कला कोठी भी कहा जाता है |
गऊघाट
से गोमती अब लखनऊ के सबसे प्राचीन कुड़िया घाट से होकर गुज़रती है| इस घाट से बाराह
अवतार की भव्य प्रतिमा प्राप्त हुई थी जो लखनऊ के राज संग्रहालय में रखी हुई है|
सन 1900 में कुड़िया घाट का जीर्णोंधार बैग टोला चौक वाले लाला भोलानाथ महाजन ने
करवाया था| इसी के समीप 1889 में बना शिवालय आज भी मौजूद है| मेडिकल कॉलेज के समीप
बने गोमती किनारे रस्तोगी घाट पर हमेशा ही श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहता है| इस
घाट पर शंकर जी और कृष्णा भगवन के मंदिर हैं| रस्तोगी घाट का निर्माण 1927 में
रस्तोगियों की पंचायत सभा ने करवाया था| इस रस्तोगी घाट विशेषता इसकी धर्मशाला है|
इस धर्मशाला में मेडिकल कॉलेज में इलाज करा रहे मरीज व उनके तीमारदार भी रह सकते
हैं| इस घाट के करीब मरी माता का मंदिर और संत गाडगे स्कूल भी है| शहर के अधिकांश
रस्तोगी इस घाट पर आकर पूजा करने की परंपरा को निभा रहे हैं|
रस्तोगी
घाट के बाद पंचवटी घाट भी है| पंचवटी घात पर हनुमान जी का मंदिर अपने आप में अनोखा
है| इस मंदिर में लेटे हुए हनुमान जी की मूर्ति है| जहाँ हर मंगलवार को बजरंगबली
के भक्तों का जमावड़ा लगता है| पंचवटी घाट को बाबा रामदास ने कई सौ वर्ष पहले
बनवाया था| इस घाट के समीप ही शुक्ला घाट है| इसे उस समय के मेयर पंडित देवी
प्रसाद शुक्ला ने 1925 में बनवाया था| इस घाट की विशेषता सरस्वती जी का मंदिर है|
इस मंदिर में इटालिया मार्बल की मूर्ति लगी है जो कहीं देखने को नहीं मिलती है|
घाट पर महादेव जी, गोमती जी, हनुमान जी एवं लक्ष्मण जी के मंदिर भी हैं|
डालीगंज
पुल के समीप गोमती तट पर बना लल्लुमल घाट भव्य आकार लिए है है| इस घाट पर कार्तिक
पूर्णिमा का मेला भी लगता है| लल्लुमल घाट को 1927 में मशकगंज के सेठ भगवन दास ने
अपने पिता लल्लुमल जी की स्मृति में बनवाया था| इस पुल के करीब ही दूसरी ओर
नारदानंद जी का आश्रम है|
गोमती
नदी के तक पर बना मोतीमहल घाट का अपना निजी महत्त्व है| सिंधियों में ज्यादाटार
त्योहारों में जल की महिमा है इस लिए सिन्धी लोगों ने इस घात को अपने पर्व और
त्यौहार के लिए चुना है|
इसके
बाद निशातगंज पुल होते हुए गोमती बैकुंठधाम पहुँचती है जिसे भैसकुंड का श्मशान घाट
कहा जाता है| इसके बाद गोमती अपने आखिरी पड़ाव पिपरा घाट पर पहुँचती है| इस घाट को सन 1924 में सदर
बाज़ार के सठे बाबु गुरु चरण लाल ने अपने छोटे भाई ब्रजलाल की याद में बनवाया था|
गोमती
के धार्मिक पहलु ने राजनीति एवं राजनेताओं को भी सशक्त किया है| जिसका अंदाज़ा इस
बात से लगाया जा सकता है कि अब गोमती पर राजनीति होने लगी है और राजनीति ने भी
गोमती पर इतना असर सर डाला है कि उसकी रुपरेखा ही बदल गयी है| प्राचीन काल की
गोमती और आज की गोमती में फर्क साफ दिखाई देने लागा है| एक ओर जहाँ गोमती पर
पर्यटकों को लुभाने के लिए रिवर फ्रंट और मरीन ड्राइव आदि बनते हैं वहीँ गोमती में
कई गंदे नालों का पानी आज भी जा रहा है साथ ही साथ विकास कार्यों के नाम पर गोमती को कई जगह पर रोका भी जाने लगा है|
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